विद्या ददाति विनयं,विनयाद्याति पात्रताम्।
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति,धनाद्धर्मं ततः सुखम्।।
हम ,
सुंदर सुर सजाने को साज बनाते हैं,नौसिखिए परिंदों को बाज़ बनाते हैं।
चुपचाप सुनते हैं शिकायतें सबकी,तब दुनिया बदलने की आवाज़ बनाते हैं।।
समंदर तो परखता है हौसले कश्तियों के,और हम डूबती कश्तियों को जहाज बनाते हैं।
बनाए चाहे कोई चाँद पर बुर्ज ए खलीफा, हम तो कच्ची ईटों से ही ताज़ बनाते हैं।।